लोभ–मोह–आसक्ति–तृष्णा–लालसा
Lobh-Moh-Trishna-Lalsa
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जिस व्यक्ति की तृष्णा जितनी बड़ी होती है, वह उतना ही बड़ा दरिद होता है।
तुलसीदास Tulsidas
धन पाने की लालसा तमाम बुराइयों की जड़ हैं।
बाइबिल Bible
जो व्यक्ति जाग्रत है, जिसका मन तृष्णा से रहित है, उस व्यक्ति के लिए कोई भय नहीं।
महात्मा गांधी Mahatma Gandhi
आसक्ति ही मनुष्य को नीच और दुर्बल बनाने वाली है।।
स्वामी रामतीर्थ Swami Ramtirath
प्रार्थना की खूबी है कि वह सब प्रलोभनों पर विजय दिलाती है।
बर्नार्ड शॉ Bernard Shaw
हृदय की शुद्धता का अर्थ है अपनेआपको सांसारिक पदार्थों की आसक्ति से पृथक रखना। त्याग का अर्थ इससे मात्र कम नहीं।
स्वामी रामतीर्थ Swami Ramtirath
जैसे कछुआ अपने अंगों को अपने शरीर में समेट लेता है, वैसे ही मेधावी (ज्ञानी) पुरुष पापों को अध्यात्म के द्वारा समेट लेता है।
भगवान महावीर Bhagwan Mahavir
आसक्ति से निवृत्ति ही आत्मविकास की मुख्य सीढ़ी है।
अज्ञात
निर्धन वह नहीं जिसके पास उपयोग के साधन कम है वरन् वह है, जिसकी तृष्णा अधिक है।
अज्ञात
लोकैषणा का पिशाच हृदय में संतोष की शीतलता नहीं आने देता।
अज्ञात
कामनाओं से भरे मन में भावनाओं का उदय नहीं होता।
अज्ञात
महत्त्वाकांक्षी और यशस्वी होने की इच्छा बो स्वाभाविक लेकिन अतिशय लोभ मनुष्य के पतन का कारण भी बन जाता है।
चाणक्य Chanakya
तृष्णा चतुर को भी अंधा बना देती है।
सादी Sadi
क्रोध प्रीति को नष्ट करता है, मान विनय को नष्ट करता है, माया मैत्री को नष्ट करती है और लोभ सब कुछ नष्ट करता है।
भगवान महावीर Bhagwan Mahavir